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ग्राव्णो॑ ब्र॒ह्मा यु॑युजा॒नः स॑प॒र्यन् की॒रिणा॑ दे॒वान्नम॑सोप॒शिक्ष॑न्। अत्रिः॒ सूर्य॑स्य दि॒वि चक्षु॒राधा॒त्स्व॑र्भानो॒रप॑ मा॒या अ॑घुक्षत् ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

grāvṇo brahmā yuyujānaḥ saparyan kīriṇā devān namasopaśikṣan | atriḥ sūryasya divi cakṣur ādhāt svarbhānor apa māyā aghukṣat ||

पद पाठ

ग्राव्णः॑। ब्र॒ह्मा। यु॒यु॒जा॒नः। स॒प॒र्यन्। की॒रिणा॑। दे॒वान्। नम॑सा। उ॒प॒ऽशिक्ष॑न्। अत्रिः॑। सूर्य॑स्य। दि॒वि। चक्षुः॑। आ। अ॒धा॒त्। स्वः॑ऽभानोः। अप॑। मा॒याः। अ॒घु॒क्ष॒त् ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:40» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:12» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (ब्रह्मा) चारों वेदों का जाननेवाला (कीरिणा) सम्पूर्ण विद्याओं की स्तुति करनेवाले से (युयुजानः) मिलता हुआ (नमसा) सत्कार वा अन्न आदि से (देवान्) विद्वानों की (सपर्यन्) सेवा करता और विद्यार्थियों को (उपशिक्षन्) समीप प्राप्त विद्या को ग्रहण कराता हुआ (अत्रिः) सम्पूर्ण विद्याओं में व्यापक (स्वर्भानोः) सूर्य्य की कान्ति के सदृश कान्ति जिसकी उसके (ग्राव्णः) मेघ से (सूर्यस्य) सूर्य के (दिवि) प्रकाश में (चक्षुः) नेत्र का (आ, अधात्) स्थापन करे वह (मायाः) बुद्धियों को प्राप्त होवे और अविद्याओं को (अप, अघुक्षत्) अपशब्दित करे ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो विद्वानों की सेवा करनेवाला, योगी, विद्या के प्रचार में प्रिय, विद्वान् होवे, वह जैसे बिजुली सूर्य और मेघ के सम्बन्ध से सृष्टि की पालना और दुःख का निवारण होता है, वैसे ही अध्यापक और अध्येता के सम्बन्ध से विद्या की रक्षा और अविद्या का निवारण करता है ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो ब्रह्मा कीरिणा युयुजानो नमसा देवान् सपर्यन् विद्यार्थिन उपशिक्षन्नत्रिः सन् स्वर्भानोर्ग्राव्णः सूर्यस्य दिवि चक्षुराधात् स मायाः प्राप्नुयादविद्या अपाघुक्षत् ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ग्राव्णः) मेघात् (ब्रह्मा) चतुर्वेदवित् (युयुजानः) (सपर्यन्) सेवमानः (कीरिणा) सकलविद्यास्तावकेन। कीरिरिति स्तोतृनामसु पठितम्। (निघं०३.१६) (देवान्) विदुषः (नमसा) सत्कारेणान्नादिना वा (उपशिक्षन्) उपगतां विद्यां ग्राहयन् (अत्रिः) सकलविद्याव्यापकः (सूर्यस्य) (दिवि) प्रकाशे (चक्षुः) (आ, अधात्) आदध्यात् (स्वर्भानोः) स्वरादित्यस्य भानुर्दीप्तिर्यस्य तस्य (अप) (मायाः) प्रज्ञाः (अघुक्षत्) अपशब्दयेत् ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यो विद्वत्सेवी योगी विद्याप्रचारप्रियो विद्वान् भवेत्स यथा विद्युत्सूर्यमेघसम्बन्धेन सृष्टेः पालनं दुःखनिवारणं च भवति तथैवाऽध्यापकाध्येतृसम्बन्धेन विद्यारक्षणमविद्यानिवारणं च करोति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जसे विद्युत, सूर्य व मेघ यांच्या योगाने सृष्टीचे पालन व दुःखाचे निवारण होते. तसे विद्वानांची सेवा करणारा, योगी, विद्या प्रचार प्रिय, विद्वान विद्येचे रक्षण व अविद्येचे निवारण करतो. ॥ ८ ॥